Rabi Crops : IARI ने हाल में अधिक उपज देने वाली गेंहू की नई पूसा HD 3386 पेश की है। जिसकी रबी सीजन में यूपी समेत आठ राज्यों में बुवाई करके अच्छी पैदावार ली जा सकती है। कृषि वैज्ञानिक भी इस सीजन में गेंहू की नई किस्म की बुवाई की किसालों से अपील कर रहे हैं। गेंहू की इस किस्म में लीफ रस्ट और येलो रस्ट रोग भी नहीं पनपने हैं।
लखनउ,उत्तर प्रदेश
Wheat Variety HD 3386: अभी रबी की फसल (Rabi Crop) का सीजन है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार में किसान इस समय गेहूं बुवाई की तैयारी में लगे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute) ने किसानों के लिए गेहूं की उन्नत किस्म Pusa Wheat 3386 या Pusa HD 3386 किस्म तैयार की है। जो गेंहू की एक अच्छी किस्म (good variety of wheat) है। गेंहू की उन्नत किस्म Pusa Wheat 3386 या HD3386 बेहतर पैदावार के साथ ही पत्ती धब्बा रोग और पीला धब्बा रोग से लड़ने में पूरी क्षमता है। जिससे किसानों की उपज अधिक होगी। इसके साथ ही गेंहू की फसल पर रोगों-कीटों की रोकथाम पर होना वाला खर्च कम होगा। गेहूं की ये प्रजाति HD 3386 महज 145 दिन में तैयार हो जाती है। इसमें प्रति हेक्टेयर 63 क्विंटल से अधिक की पैदावार होती है। इस समय रबी की फसल में आइए गेहूं की उन्नत किस्म HD 3386 (Pusa, पूसा) के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बता दें कि भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार में गेहूं (Wheat Crops) की खूब खेती होती है। रबी में (Rabi Crops) में इन प्रदेश में गेंहू फसल अहम है। देश के इन राज्यों की अनुकूल जलवायु और मिट्टी में गेहूं की अच्छी उपज होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों के किसानों को रबी सीजन में गेंहू की उन्नत किस्म HD 3386 (पूसा) की बुवाई करने की सलाह दी है।
इसमें लीफ रस्ट और यलो रस्ट नहीं लगे (It does not get affected by leaf rust and yellow rust)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों के मुताबिक, गेंहू की किस्म पूसा में रोगों को खत्म करने की क्षमता है। जिससे ही इस किस्म में जहां पैदावार अच्छी होती है। इसके साथ ही लागत का खर्च भी कम रहता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने हाल ही में अधिक पैदावार वाली गेंहू के बीज की किस्म HD 3386 पेश की है। रबी सीजन के लिए सिंचित और समय पर बुवाई करने से वजह से पूसा गेहूं 3386 (Pusa Wheat 3386) बेहतर है। इस गेहूं की किस्म में रोग लीफ रस्ट और येलो रस्ट को पनपने हैं। यानी कहें तो इस किस्म के बीज में रोग प्रतिरोधी क्षमता है। जिसकी खुद ही ये रोग खत्म कर देती है। इन दोनों रोगों में गेहूं की पत्ती और तने में धब्बा रोग लग जाता है। जो पौधे की ग्रोथ रोक देता है। जिससे ही उपज प्रभावित होती है। जबकि, गेंहू की ये नई किस्म दोनों रोगों ही पनपने नहीं देती है।
इन आठ राज्यों में बुवाई की सलाह (Advice for sowing in these eight states)
IARI दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गेहूं की 3386 किस्म देश के आठ राज्यों में अच्छी पैदावार दे सकती हैं। जिसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों ऊना जिला और पांवटा घाटी और उत्तराखंड तराई क्षेत्र में बुवाई करके अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इसके साथ ही राजस्थान के कोटा और उदयपुर संभाग में गेंहू की पूसा किस्म की बुवाई करके अच्छी पैदावार ली जा सकती है। यूपी की बात करें मो झांसी मंडल और जम्मू के कठुआ जिले में गेंहू की किस्म पूजा 3386 की बुवाई नहीं करनी चाहिए।
आयरन और जिंक भी भरपूर (Iron and zinc also plentiful)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के अनुसार पूसा गेहूं 3386 (Pusa Wheat 3386) किस्म 145 दिन में तैयार हो जाती है। इस गेंहू की इस किस्म में आयरन 41.1 पीपीएम और जिंक 41.8 पीपीएम मात्रा होती है। इसके साथ ही
एक हेक्टेयर में उत्पादन की बात करें तो गेंहू की किस्म 3386 (Pusa Wheat 3386) की 63 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है। कृषि वैज्ञानिकों की किसानों को सलाह है कि रबी सीजन में ऐसी ही गेंहू की अच्छी किस्म की निर्धारित क्षेत्रों में बुवाई करनी चाहिए।
पुरानी किस्म की जगह लेगी 3386 नई किस्म (replace the old variety)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों के मुताबिक, गेंहू की पूसा 3386 (Pusa Wheat 3386) किस्म एचडी 2967 (Pusa Wheat 2967) किस्म की जगह ली है। आईएआरआई ने Pusa Wheat 2967 किस्म सन 2010 में विकसित की थी। पिछले सीजन की बात करें तो देश में 340 लाख हेक्टेयर में गेंहू की बुवाई हुई थी। जिसमें लगभग 25 फीसदी एरिया में गेंहू की पूसा 3386 की बुवाई हुई थी। पूजा की किस्म Wheat 2967 की उज 22 क्विंटल प्रति एकड़ रही। जबकि, गेंहू की नई किस्म पूसा 3386 की उपज 25 क्विंटल प्रति एकड़ रही थी।
गेंहू की पूसा 3386 (Pusa Wheat 3386) किस्म की खासियत (Specialties of Pusa 3386 Wheat Variety)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की विकसित की गई गेंहू की एक नई किस्म पूसा 3386 है। जिसमें कुछ खासियतें ये हैं।
- पूसा 3386 गेहूं की किस्म 145 दिनों में तैयार हो जाती है।
- पूसा 3386 की प्रति हेक्टेयर में पैदावार 63 क्विंटल तक रहती है।
- पूसा 3386 में आयरन और ज़िंक भरपूर मात्रा में होता है।
- गेहूं की पूसा 3386 किस्म में पत्ती धब्बा रोग और पीले धब्बे नहीं होता है।
- पूसा 3386 में रोगों-कीटों की रोकथाम पर खर्च बेहद कम आता है।
- पूसा 3386 की बुवाई उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों में करना सही है।
गेंहू की फसल लगने वाले कीट (Major pests of wheat crop)
दीमक (Termite) : ये एक सामाजिक कीट है, जो कालोनी बनाकर रहती है। इनकी एक कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व राजा होते हैं। जिसमें श्रमिक पीलापन लिये हुए सफ़ेद रंग के पंखहीन होते है। जो फसलों के क्षति पहुंचाते है।
दीमक नियंत्रण के उपाय (Measures of control)
- बुआई से पूर्व दीमक के नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी या थायोमेथाक्सम 30 प्रतिशत एफएस की 3 मिली. मात्रा प्रति किग्रा बीज की दर से बीज को शोधित करें।
- ब्यूवेरिया बैसियाना 15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा. प्रति हे. 60-70 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
गुजिया विविल (Gujiya weevil): यह कीट भूरे मटमैले रंग का होता है। जो सूखी जमीन में ढेलें एवं दरारों में रहता है। यह कीट उग रहे पौधों को जमीन की सतह से काटकर हानि पहुंचाते हैं।
नियंत्रण के उपाय (Control measures): खड़ी फसल में दीमक / गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 5 ली. प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
माहूँ (Aphids) : ये हरे रंग के शिशु एवं प्रौढ माँहू पत्तियों एवं हरी बालियों से रस चूस कर हानि पहुंचाती है। माहूँ मधुश्राव करते हैं जिस पर काली फफूंद उग आती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उतपन्न होती है।
नियंत्रण के उपाय (Control measures): माहूँ कीट के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा आंक्सीडेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी. की 0 ली. मात्रा अथवा थायोमेथाक्सम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. 50 ग्राम प्रति है। लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है।
गेहूं के खेत में चूहे का नियंत्रण (Control of rats in wheat field) : खेत का चूहा (फील्ड रैट) मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) और खेत का चूहा (फील्ड माउस) हैं।
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