Nematode in Guava गरीबों के सेब कहे जाने वाले अमरूद पर निमेटोड के संक्रमण का खतरा है. ये थाई पिंक और ताइवान पिंक जैसी विदेशी प्रजातियों के साथ ही संक्रमण आया है.
लखनऊ (उत्तर प्रदेश).
यूपी में अमरूद के बागवान बेहद परेशान हैं. पोषक गुणों (nutritional properties) और वाजिब दाम की वजह से गरीबों का सेब कहे जाने वाले अमरूद में निमेटोड के संक्रमण का खतरा (risk of nematode infection) है. यूपी में ये संक्रमण थाई पिंक और ताइवान पिंक (Thai Pink and Taiwan Pink) जैसी विदेशी प्रजातियों के साथ आया है. जो तेजी से फैलता है. वर्तमान की बात करें तो अमरूद के करीब आधे बागान निमेटोड की चपेट में आ चुके हैं. इस निमेटोड संक्रमण से अमरूद के बागवानों की परेशानी को लेकर केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute of Subtropical Horticulture) ने पिछले दिनों मुख्य सचिव के जरिए सीएम योगी को इसकी जानकारी दी है. इससे उम्मीद है कि योगी सरकार जल्द ही बागवानों के हित से जुड़े इस मामले में जल्द ही कोई एक्शन ले.
गंभीर संकट है निमेटोड संक्रमण
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute) के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute of Subtropical Horticulture) के वैज्ञानिकों ने पिछले पांच वर्षों में किए गए सर्वेक्षण में भी निमेटोड संक्रमण के खतरे का जिक्र किया है. सीआईएसएच संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन बताते हैं कि, अमरूद की फसल के लिए निमेटोड संक्रमण बड़ा संकट है. इस संक्रमण से अमरूद के बागानों में कई तरह से नुकसान होता है. इस संक्रमण से फलों की गुणवत्ता खराब होने से उपज भी प्रभावित होती है. इसके साथ ही नियमित अंतराल पर संक्रमण फैले नहीं, इसे रोकने लिए खर्च अधिक होता है. उससे उत्पादन की लागत बढ़ रही है.
संक्रमण का प्रबंधन मुश्किल (Management of infection is difficult)
सीआईएसएच संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन बताते हैं कि, निमेटोड संक्रमण खत्म करना संभव नहीं है. सिर्फ एक हद तक इसका प्रबंधन ही किया जा सकता है. इसमें फ्लोपायरम का प्रयोग अपेक्षाकृत असरदार है. जो महंगा होता है. इसका भी असर महज छह माह तक ही रहता है. ऐसे में मुख्य क्षेत्र में रोपाई से 15 दिन पहले निमेटोड संक्रमित ग्राफ्ट की मिट्टी और जड़ों को फ्लोपायरम 0.05% घोल से उपचारित किया जाना चाहिए. ग्राफ्ट को जितना संभव हो उतना गहरा रोपण किया जाए. फ्लोपायरम के 0.05% घोल के 2 लीटर प्रति पौधे की दर पर प्रयोग किया जाना है. अमरूद के बाग की स्थापना के लिए खेत का चयन भी बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि, भारी मिट्टी ही निमेटोड के लिए दमनकारी होती है.
वैज्ञानिक रूटस्टॉक्स को लेकर कर रहे काम (Scientists are working on rootstocks
सीआईएसएच संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन बताते हैं कि, सबसे अच्छा तरीका ये है कि, अमरूद के नए बाग लगाने के लिए चुने क्षेत्र में रूट-नॉट निमेटोड की अनुपस्थिति और आईसीएआर फ्यूसिकॉन्ट, सीआईएसएच बैक्टीरियल बायो-एजेंट जैसे जैव-एजेंटों का निरंतर उपयोग किया जाए. इसमें संस्थान के वैज्ञानिको ने सीडियम कैटलीनम और अंतर-विशिष्ट मोले रूटस्टॉक जैसे रूटस्टॉक्स की भी पहचान की है. जो निमेटोड के प्रति उच्च स्तर की सहिष्णुता दिखाते हैं. इस रोग के प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक रूटस्टॉक्स के तेजी से गुणन पर गंभीरता से काम कर रहे है.
ये जैव नियंत्रक एजेंट भी प्रभावी (Scientists are working on rootstocks)
सीआईएसएच संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन बताते हैं कि, ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, पोकोनिया क्लैमाइडोस्पोरिया, पर्प्यूरोसिलियम लिलेसीनम, बैसिलस एमिलोलिकेफेसिएन्स जैसे जैव-नियंत्रक एजेंट भी निमेटोड संक्रमण के प्रबंधन में प्रभावी हैं. मगर, इनको बार-बार दोहराने की जरूरत होती है. अन्तर शस्यन और जैविक उत्पादों में सूत्रकृमि प्रतिरोधी फसलों का उपयोग मामूली रूप से प्रभावी पाया गया है.
अध्ययन में आए चौंकाने वाले नतीजे (Surprising results of the study)
विशेषज्ञ डॉ. पीके शुक्ल अमरूदों के रोग प्रबंधन पर लंबे समय से काम कर रहे हैं. उन्होंने इसको लेकर अध्ययन किए हैं. जिनमें साबित हुआ है, कि अमरूद की विदेशी प्रजातियां निमेटोड संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील हैं. मगर, इलाहाबाद सफेदा जैसी पारंपरिक किस्म और स्वदेशी रूप से जारी की गई किस्मों जैसे धवल, ललित, लालिमा, श्वेता समेत अन्य में विदेशी किस्मों की तुलना में निमेटोड के प्रति सहिष्णुता अधिक पायी जाती है. बागवानों, किसानों और किचेन गार्डन में लगाने के लिए इन्ही प्रजातियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने श्वेता और ललित जैसे अमरूद की किस्मों को संरक्षित किया है.
अवैध नर्सरियों से पौधे बेचने पर हो सख्ती
वैज्ञानिकों का कहना है कि, सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि, अमरूद की इन प्रजातियों की बिक्री केवल उन नर्सरियों से की जाए. जहां पर स्रोत संस्थान की प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है. जो पौधे उत्पादक अवैध रूप से काम करते हैं. उन पर सख्त कार्रवाई की जाये. इस बारे में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के डॉ. प्रभात कुमार के साथ वैज्ञानिकों की टीम ने रोपण सामग्री के साथ निमोटेड के प्रसार से बचाव की तकनीक भी तैयार की है.
संस्थान की ये हैं विकसित किस्में (arieties developed by the institute)
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों की टीमों ने अमरूदों की कई प्रजातियां विकसित की हैं. जिनमें फल भीतर से गुलाबी एवं बाहर से आकर्षक लाल आभायुक्त केसरिया पीले रंग के होते हैं. फल का गूदा सख्त एवं शर्करा एवं अम्ल के उचित अनुपात के साथ ही गुलाबी रंग का होता है. इसके साथ ही ताजे उपभोग एवं परिरक्षण दोनों की ही दृष्टि से ये किस्म बेहतर हैं. इसके गूदे का गुलाबी रंग परिरक्षण के बाद भी एक वर्ष तक बना रहता है. यह किस्म अमरूद की लोकप्रिय किस्म इलाहाबाद सफेदा की अपेक्षा औसतन 24 प्रतिशत अधिक उपज देती है. इन्हीं गुणों के कारण इस प्रजाति के पौधों का रोपण व्यावसायिक खेती में किया जाता है.
श्वेता: ये एप्पल कलर अमरूद की प्रताति है. इस प्रजाति पौधों के फल थोड़े गोल होते हैं. फलों का औसत आकार करीब 225 ग्राम और बीज मुलायम होता है. सीजन में अमरूद के एक पेड़ से करीब 90 किग्रा फल मिलते हैं.
धवल: अमरूद की ये प्रजाति इलाहाबाद सफेदा से भी लगभग 20 फीसद से अधिक फल देती है. इसका फल गोल, चिकने एवं मध्यम आकार होने के साथ ही करीब 200-250 ग्राम का होता है. पकने पर इन फलों का रंग हल्का पीला और गूदा सफेद, मृदु सुवासयुक्त मीठा होता है. बीज भी अपेक्षाकृत खाने में मुलायम होता है.
लालिमा: अमरूद की इस प्रजाति एप्पल ग्वावा से चयनित किस्म है. इस प्रजाति में फलों का रंग लाल होता है. प्रति फल औसत वजन 190 ग्राम होता है.
खनिज, विटामिंस और रेशा से भरपूर अमरूद
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन बताते हैं कि, अमरूद खास स्वाद और सुगंध के अलावा विटामिन सी से भरपूर होता है. अमरूद में शर्करा, पेक्टिन भी होता है. इसके साथ ही अमरूद में खनिज, विटामिंस और रेशा भी खूब होता है. इसलिए अमरूद अमृत फल और गरीबों का सेब कहते हैं. अमरूद के ताजे फलों के सेवन के साथ ही इनकी प्रोसेसिंग करके चटनी, जेली, जेम, जूस और मुरब्बा समेत अन्य उत्पाद बना सकते हैं.
प्रति 100 ग्राम अमरूद में मिलने वाले पोषक तत्व
- नमी 81.7
- फाइबर 5.2
- कार्बोज 11.2
- प्रोटीन 0.9
- वसा 0.3
- (इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फॉस्फोरस, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, आयरन आदि भी उपलब्ध होते हैं.)
आम के साथ अमरूद लगाने पर आय अधिक
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक सुशील शुक्ला बताते हैं कि, आम के साथ अमरूद के भी बाग लगाए ज सकते हैं. बाग में आम के पौधों की लाइन से लाइन की दूरी 10 मीटर रखें. दो आम के पौधों और लाइन से लाइन के बीच में 55 मीटर पर अमरूद के पौधे लगाएं. इससे अमरूद के काफी पौधे लग जाएंगे. बागवानों की दोहरी फसल मिलने से मुनाफा होगा.
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