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Soil Testing Report: आगरा मंडल के खेतों की मिट्टी बीमार; कैसे बढ़े पैदावार, नाइट्रोजन शून्य ! Soil of Agra division’s fields is Nitrogen near zero

Soil Testing Report Exlushive News Soil of Agra division's fields is Nitrogen near zero 05 10 2024
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Soil Testing Report: मृदा परीक्षण में पोषक तत्वों को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात नाइट्रोजन की कमी के स्तर को लेकर है। आगरा मंडल में सबसे ज्यादा मृदा में नाइट्रोजन की कमी सामने आई है यह कभी इतनी ज्यादा है कि शून्य से मात्र 0.20 प्रतिशत पीछे है।

आगरा, उत्तर प्रदेश

Soil Testing Report: सावधान! खेतीबाड़ी (farming) के लिए हर साल खतरा बढ़ रहा है। खेतों की मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen) की कमी का स्तर शून्य (99.80%) की ओर है। नाइट्रोजन ने खतरे का अर्लाम बजा दिया है। किसानों ने अभी भी पुरानी खाद पद्धति का इस्तेमाल नहीं बढ़ाया तो आने वाले कुछ सालों में मृदा की हालत और ज्यादा खराब हो सकती है। मृदा में असंतुलित होते पोषक तत्वों से फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है। साथ ही लागत मूल्य भी बढ़ रही है। नाइट्रोजन की कमी का स्तर सरकारी आंकड़ों (government data) में आगरा मंडल में 99.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। फसलों को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन देने के लिए किसानों को अच्छी खासी जेब ढीली करनी पड़ रही है।

किसान खेतों में जैविक खाद (organic manure) , हरी खाद (green manure) और गोबर की खाद (dung manure) का इस्तेमाल कम और रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग मात्रा से अधिक कर रहे हैं। इससे खेतों की मृदा में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ रहा है। इससे किसानों को खेतीबाड़ी महंगी दिखने लगी है। फसलों की लागत हर साल बढ़ रही है। बता दें कि कृषि विभाग (Agriculture Department) ने मृदा कार्ड बनाने के लिए खेतों की मृदा के नमूने लिए थे। मृदा परीक्षण के परिणामों ने चौंका दिया है। आगरा जनपद के विभिन्न ब्लॉकों से आए मृदा के नमूनों में 99.5 प्रतिशत नाइट्रोजन की कमी पाई गई है। इसी तरह मथुरा जनपद में 99.6 प्रतिशत, मैनपुरी जनपद में 99.7 प्रतिशत और फिरोजाबाद जनपद में नाइट्रोजन की कमी का स्तर 99.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। मृदा के नमूनों में नाइट्रोजन का स्तर बहुत ज्यादा कम है। यह मृदा में जीवांश कार्बन का अति न्यूनतम स्तर है। किसान अपने खेतों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए उर्वरक (यूरिया) डालते हैं। इससे फसल की लागत मूल्य बढ़ जाती है।

जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार सिंह बताते हैं कि खेतों में गोबर की खाद, हरी खादी और जैविक खाद डालने का भी किसानों में रुझान कम है। कई किसान सही जानकारी के अभाव में रासायनिक उर्वरकों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग कर रहे हैं। यह प्रयोग भी उनके लिए हानिकारक साबित हो रहा है। किसानों का कहना है कि फसलों में उर्वरकों का प्रयोग किये बिना पूरी पैदावार नहीं मिल पा रही है। सब्जियों में भी कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग करना बेहद आवश्यक हो गया है। कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करने पर फसल में कीटों का प्रकोप हो जाता है।

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नाइट्रोजन की कमी से फसलों में नुकसान (Damage to crops due to lack of nitrogen)

नाइट्रोजन की कमी होने से पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। लचक कम होने के साथ कड़ी व छोटी हो जाती हैं। इस कारण हल्के से भी तनाव के कारण वह आसानी से टूटकर गिर जाती हैं। साथ ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी पड़ने लगती है। पौधों का विकास प्रभावित हो जाता है।

जैविक खाद और गोबर खाद का इस्तेमाल करें (Use organic manure and cow dung manure)


जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार सिंह बताते हैं कि रासायनिक उर्वरकों का लगातार इस्तेमाल करने से मृदा की उर्वरा क्षमता कम हो रही है। इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को रासायनिक उर्वरकों की बजाय जैविक खाद, गोबर की खाद और हरी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इन खादों से मिट्टी और फसलों को जरूरी मुख्य पोषक तत्व मिल जाते हैं। फसल को जरूरत के हिसाब से पोषक तत्व मिलते हैं। इन खादों के पोषक तत्व मृदा को स्वस्थ बनाते हैं न कि बीमार करते हैं।

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मृदा में नाइट्रोजन का उचित प्रबंधन बेहद जरूरी (Proper management of nitrogen in the soil is very important)

आगरा के बिचपुरी स्थित केवीके के अध्यक्ष व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि, नाइट्रोजन पौधों में क्लोरोफिल (हरा रंग) का प्रमुख घटक है, वह तत्व जिसके द्वारा पौधे पानी और कार्बन डाइऑक्साइड (यानी, प्रकाश संश्लेषण) से शर्करा (भोजन ) का उत्पादन करने के लिए सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का उपयोग करते हैं। जिससे फसल की उत्पादकता का निर्धारण होता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अमीनो एसिड (प्रोटीन निर्माण- जो अनाज, फल और पौधों के बीजों में जमा होता है।) व न्यूक्लिक एसिड (डीएनए) का निर्माण करता है अतः प्रर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन प्राप्त करने वाला पौधा ही आमतौर पर जोरदार वृद्धि प्रदर्शित करता है। इस लिए मृदा में नाइट्रोजन का उचित प्रबंधन अति आवश्यक है।

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पौधों की वृद्धि और बेहतर उपज के लिए जरूरी है नाइट्रोजन (Nitrogen is necessary for plant growth and better yield)

मृदा वैज्ञानिक डॉ. संदीप सिंह ने बताया कि मृदा में उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा को मापता है जिसे पौधों द्वारा तुरंत अवशोषित किया जा सकता है। मृदा में नाइट्रोजन की उपलब्धता फसल अनुरूप फसल दर फसल अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सामान्य तौर पर यह स्तर 10 मिलीग्राम/किग्रा से नीचे नहीं एवं 50 मिलीग्राम/किग्रा से अधिक नहीं होना चाहिए। नाइट्रोजन के कमी के लक्षण पौधों की पत्तियों पर क्लोरोफिल की कमी के कारण हल्के पीले रंग (क्लोरोसिस) की हो जाती हैं। पौधों में फल, फूल, प्रोटीन स्टार्च आदि की मात्रा कम हो जाती है। परिणामस्वरूप पौधों का विकास रुक जाता है। जिससे उत्पादन में गिरावट आती है। समुद्री शैवाल आधारित उर्वरक सबसे अच्छा जैविक नाइट्रोजन युक्त उर्वरक है। रासायनिक तौर पर यूरिया आम और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला नाइट्रोजन उर्वरक है, जो पौधों की वृद्धि और उपज में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता रहा है।

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मृदा की जांच कराकर इस्तेमाल करें उर्वरक (Get the soil tested before using fertilizers)

आगरा की क्षेत्रीय भूमि परीक्षण प्रयोगशाला के प्रभारी डॉ. बृजराज सिंह ने बताते हैं कि किसान अपने खेतों की मृदा जांच जरूर कराएं। रिपोर्ट आने के बाद ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें। मृदा में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ा हुआ है। इसलिए गोबर खाद, कंपोस्ट खाद का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। मृदा परीक्षण के दौरान नाइट्रोजन का न्यूनतम स्तर 99.8 प्रतिशत तक पहुंचा हुआ मिला है। किसानों को मृदा की उर्वरा शक्ति बचानी है और फसलों से कम लागत में अच्छा उत्पादन लेना है तो उर्वरकों का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए।

खाद की परिभाषा (Definition of Manure): जल के अतिरिक्त वे सब पदार्थ जो मिट्टी में मिलाए जाने पर उसकी उर्वरता में सुधार करते हैं खाद कहलाते हैं।

खाद देने के उद्देश्य (Objectives of Manure)
  • संतुलित पोषक तत्व उपलब्ध करना-पौधों को अधिक से अधिक एवं संतुलित मात्रा में सभी आवश्यक तत्वों की उपलब्धि कराना।
  • फसलों से अधिक लाभ प्राप्त करना- भूमि में बार-बार फसलोत्पादन से मिट्टी व गमलों में उपस्थिति मिट्टी के पोषक तत्व, पौधों व फसलों के रूप में काट दिये जाते हैं।
  • धीरे-धीरे मिट्टी में अधिक उपज देने वाली फसलों की प्रजातियां उगाने से मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश मिलाएं जाते हैं।
  • भौतिक दशा में सुधार- खाद मिट्टी की भौतिक दशा में सुधार करके भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धि बढ़ाकर उसकी शक्ति में वृद्धि करती है।

गोबर की खाद का लाभ दायक प्रभाव

  • मिट्टी में भौतिक सुधार
  • मिट्टी में वायु संचार बढ़ता है।
  • मिट्टी में जलधारण व् जल सोखने की क्षमता बढ़ती है।
  • मिट्टी में टाप का स्तर सुधरता है।
  • पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है।
  • मिट्टी के कण एक-दुसरे से चिपकते हैं। मिट्टी का कटाव कम होता है।
  • भारी चिकनी मिट्टी तथा हल्की रेतीली मिट्टी की संरचना का सुधार होता है।

मिट्टी के रासायनिक गुणों का प्रभाव

  • पौधों को पोषक तत्व अधिक मात्रा में मिलते हैं।
  • मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है।
  • मिट्टी की क्षार विनिमय क्षमता बढ़ जाती है।
  • मिट्टी में पाये जाने वाले अनुपलब्ध पोषण तत्व, उपलब्ध पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
  • पोटेशियम व फास्फोरस सुपाच्य सरल यौगिकों में आ जाते हैं।
  • पौधों की कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज व सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
  • कार्बनिक पदार्थ के विच्छेदन से कार्बनडाई ऑक्साइड मिलती है। अनेक घुलनशील कार्बोनेट व बाईकार्बोनेट बनाती है।

मिट्टी के जैविक गुणों पर प्रभाव (Effect on biological properties of soil)

  • मिट्टी में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है।
  • लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता भी बढ़ती है।
  • अनेक जीवाणु मिट्टी से पोषक तत्व लेकर पौधों को प्रदान करते हैं।
  • जीवाणुओं द्वारा वातावरण की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है।
  • जीवाणु द्वारा वातावरण की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण अधिक होता है।
  • जीवाणु जटिल नाइट्रोजन को अमोनिया नाईट्रेट आयन्स में बदलते है। नाइट्रोजन का यही रूप पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है।

गोबर खाद प्रयोग करने की विधि (Method of using cow dung manure): गोबर की खाद को खेत में किस विधि से डालें यह कई बातों जैसे खाद की मात्रा, खाद की प्रकृति, मिट्टी की किस्म और फसल के प्रकार पर निर्भर करता है।

गोबर की खाद डालने का समय (Time of applying cow dung manure)

गोबर की सड़ी हुई खाद को फसल की बुवाई से पहले मिट्टी को तैयार करने के समय खेतों में डालें। इस्तेमाल करें। भारी चिकनी मिट्टी में ताजा गोबर की खाद बुआई से काफी समय पूर्व इस्तेमाल करना अच्छा होता है, क्योंकि विच्छेदित खाद से मिट्टी में वायु संचार बढ़ जाता है। जलधारण क्षमता भी सुधरती है। हल्की रेतीली मिट्टी एवं पर्वतीय मिट्टी में वर्षाकाल के समय में छोड़कर करें।

गोबर खाद की मात्रा (Amount of cow dung manure)

गोबर की खाद खेत में मोटी परत की अपेक्षा पतली डालना अच्छा रहता है। लंबे समय की फसल में समय-समय पर खाद की थोड़ी मात्रा देना, एक बार अधिक खाद देने की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। सभी फसलों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर एक-एक में 10 टन, गोबर की खाद खेत में दी जाती है। सब्जियों के खेत में 50-100 टन प्रति हेक्टेयर व गमलों में साईज व मिट्टी के अनुसार 200 से 600 ग्राम बड़े गमलों में 1 किलोग्राम, से 1.5 किलोग्राम तक प्रति गमला साल में 2-3 बार डालें।

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