Potato Farming: आलू को निर्यात करने लायक बनाने के लिए होफेड लखनऊ, एपीडा दिल्ली, सीपीआरआई मेरठ और कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी आगरा के वैज्ञानिकों ने किसानों को टिप्स बताए। आलू की बुवाई से लेकर खुदाई तक किसानों को स्टेप बाई स्टेप बताए। खरपतवार नियंत्रण, कीट एवं रोग नियंत्रण के अलावा ग्रेडिंग के बारे में भी बारीकी से जानकारियां दीं।
आगरा, उत्तर प्रदेश
Potato Farming: भारत में आलू का उत्पादन (Potato Production) लगातार बढ़ रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश और उसमें भी आगरा का विशेष महत्व है। अधिकांश किसानों का ध्यान आलू की फसल को निर्यात के लायक बनाने पर नहीं होता है। किसान (Farmers) केवल फसल की पैदावार बढ़ाने में लगे रहते हैं। निर्यात के लिए आलू का रंग, साइज और उसकी गुणवत्ता बहुत मायने रखती है। आगरा के बिचपुरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी (Krishi Vigyan Kendra Bichpuri, Agra) में आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला में होफेड लखनऊ, एपीडा दिल्ली अधिकारियों के अलावा सीपीआरआई मोदीपुरम मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुज भटनागर और आगरा के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक (Senior Agricultural Scientist of Agra) डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान किसानों को प्रशिक्षित किया।
जिसमें आलू की फसल के लिए खेत की तैयारी से लेकर खुदाई, ग्रेडिंग और पैकिंग की बारीकियां और विसर से जानकारियां दीं। जिसमें वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने किसानों के सवालों के जवाब दिये। किसानों को संतुष्ट करके उन्हें निर्यात के लायक आलू की फसल को बनाने के लिए प्रेरित किया। कार्यशाला में आगरा की जिला उद्यान अधिकारी अनीता सिंह, धर्मेंद्र सिंह अनुपम दुबे आदि मौजूद रहे।
Potato Farming: आलू की खुदाई, निराई और ग्रेडिंग पर जोर दें (Emphasis on digging, weeding and grading of potatoes)
ICAR-CPRI Meerut के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुज भटनागर प्रधान ने किसानों को बताया कि आलू प्रति इकाई क्षेत्र में बहुत अधिक उत्पादन वाली फसल है। आलू का उत्पादन, रखरखाव और प्रसंस्करण में बहुत समय एवं ऊर्जा लगती है। देश समय पर खेत संचालन जैसे कि बीज की क्यारी तैयार करना, उर्वरक डालना, रोपण, निराई, मिट्टी चढ़ाना, खुदाई, ग्रेडिंग और बीज उपचार करने के लिए कई कुशल कृषि मशीनरी और उपकरण उपलब्ध हैं। इसलिए प्रतिस्पर्धी कृषि के इस युग में बीज और उर्वरक जैसे महंगे इनपुट के कुशल उपयोग के लिए किसानों को मशीनीकरण के माध्यम से कृषि इनपुट के सटीक अनुप्रयोग का विकल्प चुनना चाहिए। आलू रोपण मशीन, उर्वरक लगाने वाले, खरपतवार निकालने वाले, खोदने वाले, ग्रेडर और अन्य उपलब्ध मशीनों का उपयोग करना चाहिए।
सीपीआरआई ने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग से मानकीकरण किया (CPRI standardized through DNA fingerprinting)
ICAR-CPRI Meerut के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुज भटनागर प्रधान ने बताया कि कुछ मशीनें महंगी हैं। जो छोटे किसानों की पहुंच में नहीं हैं। इसलिए किसानों का समूह मशीन खरीद सकता है। कोई व्यक्तिगत किसान भी इसे ले सकता है। अधिक लाभ के लिए कस्टम हायरिंग का विकल्प चुन सकता है। भारतीय आलू अनुसंधान एवं विकास में राष्ट्रीय संस्थान होने के नाते सीपीआरआई के पास पर्याप्त ज्ञान और अनुभव है। जहां तक किस्मों की शुद्धता का सवाल है। सीपीआरआई द्वारा डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के माध्यम से मानकीकरण किया जाता है। गुणन के उद्देश्य से रोग मुक्त सामग्री इन विट्रो न्यूक्लियस स्टॉक से उपलब्ध कराई जा रही है। सीपीआरआई इस दिशा में अपने विशेषज्ञों की तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है। बाजार की जानकारी शायद अंतरराष्ट्रीय विपणन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आलू के मामले में उच्च मूल्य उतार-चढ़ाव के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। सीपीआरआई इस जिम्मेदारी को भी कुशलतापूर्वक निभा रहा है।
Potato Farming: पश्चिमी यूपी से निर्यात की संभावना दिखाने वाली आलू की ये हैं किस्म (These are the varieties of potatoes showing export potential from Western UP)
HOFED के नोडल अधिकारी शैलेन्द्र सुमन ने किसानों को बताया कि बागवानी क्षेत्र की शीर्ष संस्था उत्तर प्रदेश राज्य बागवानी सहकारी विपणन संघ (HOFED) की स्थापना नवंबर 1992 में किसानों को ताजे और प्रसंस्कृत बागवानी उत्पादों के सहकारी विपणन को सुविधाजनक बनाने एवं बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। HOFED के पास 958 प्राथमिक बागवानी सहकारी विपणन समितियों और 12 जिला बागवानी सहकारी संघों के माध्यम से बागवानी उत्पादकों का बहुत मजबूत नेटवर्क है। आगरा में आलू किसानों के लाभ के लिए पहले से ही पूर्व और कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण विषय पर कृषि विज्ञान केन्द्र बिचपुरी पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें पिछले दो दशकों में भारत का आलू निर्यात बढ़ा है।
भारत से इन देशों में आलू का एक्सपोर्ट (Potato export from India to these countries)
HOFED के नोडल अधिकारी शैलेन्द्र सुमन ने किसानों को बताया कि भारत के प्रमुख आलू आयातक देशों में नेपाल, ओमान, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, यूएई और मालदीव शामिल हैं। भारत के आलू निर्यात को बढ़ाने में कुछ चुनौतियों में उपयुक्त किस्में, टिकाऊ उत्पादन, सुरक्षा तकनीक और कुशल विपणन की आवश्यकता हैं। भारत सरकार ने आलू निर्यात संवर्धन के लिए गुजरात के साथ उत्तर प्रदेश की पहचान की गई है। आलू उत्पादन में आगरा का भी विशेष महत्व है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निर्यात की संभावना दिखाने वाली कुछ आलू किस्मों में कुफरी फ्राईसोना, कुफरी गंगा, कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी संगम और कुफरी बहार शामिल हैं।
आलू फसल में यूं करें कीट प्रबंधन (This is how to manage pests in potato crop)
आगरा के बिचपुरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र सिंह चौहान ने किसानों को जानकारी दी कि आलू फसल शुरुआत में तीन से चार प्रकार के कीट-पतंगों से प्रभावित होती है। कीट-पतंगे पत्तियों, कंदों को प्रत्यक्ष या वायरस संचरित करके अप्रत्यक्ष नुकसान पहुंचाते हैं। जिसका सीधा असर आलू उपज और गुणवत्ता पर होता है। हरे, लाल, भूरे, काले, पीले या सफेद रंग एफिड्स या माहू कीट की लंबाई 1- 4 मिमी तक हो सकती है। शारीरिक रूप से नरम शरीर वाले माहू नाशपाती आकार के पंखयुक्त या पंखहीन कीट हैं, जिसे पौधों पर तेजी से बढ़ने वाले हिस्सों पर समूहों में देखा जा सकता है। कोमल पत्तियों, तनों, शाखाओं का रस चूसकर आलू की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। संक्रमण ग्रसित पत्तियां रस निकलने के कारण मुरझाने लगती हैं या पीली पडने से प्रकाश-संशलेषण क्षमता खो देती हैं। जिसका असर उत्पादन पर होता है। माहू से भी फसल में नुकसान होता है। फेद मक्खी भी लीफ कर्ल
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