Potato Farming: केन्द्रीय आलू अनुसंधान केन्द्र ने कुफरी चिप्सोना-1 किस्म विकसित की है। जिसका रकबा यूपी में लगातार बढ रहा है। कुफरी चिप्सोना-1 की पैदावार की बात करें तो लगभग 450 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदवार होती है। आइए, कुफरी चिप्सोना-1 की खेती कैसे करें, ये जानते हैं।
Potato Farming: केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र (Central Potato Research Center) की ओर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए आलू की उन्नतशील किस्में विकसित की जा रही हैं। जिससे आलू (Potato) की अच्छी पैदावार मिले। केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र ने आलू की किस्म कुफरी चिप्सोना-1 (Kufri Chipsona-1) विकसित की। जो पैदावार से भी किसानों (Farmers) को मालामाल कर रही है। आलू की कुफरी चिप्सोना-1 की खेती (Potato Farming) यूपी और बिहार में खूब हो रही है। देखा जाए जो हर साल आलू की किस्म कुफरी चिप्सोना-1 का रकबा खूब बढ़ रहा है। आइए, जानते हैं कि यूपी और बिहार के किन किन जिलों में कुफरी चिप्सोना-1 की खेती हो रही है। आलू की किस्म कुफरी चिप्सोना-1 की पैदावार कितनी है।
केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की मानें तो आलू की किस्म कुफरी चिप्सोना-1 की बुवाई से किसानों को अच्छी पैदावार मिल रही है। आलू की ये किस्म जहां चिप्स बनाने के लिए सबसे ज्यादा उपयोग होती है तो आलू की इस किस्म की सब्जी भी स्वाद वाली रहती है। इसलिए, लोगों में कुफरी चिप्सोना-1 की डिमांड रहती है। केंद्रीय आलू अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों की मानें तो कुफरी चिप्सोना-1 की पैदावार लगभग 450 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक रहती है।
Potato Farming: कुफरी चिप्सोना-1 की खासियत Specialty of Kufri Chipsona
आलू की इस किस्म में कंद सफेद-क्रीमी, अंडाकार, सतही आंखों वाले तथा गूदा सफेद होता है। फसल 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार लगभग 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। आलू की ये किस्म पिछेती झुलसा रोग प्रतिरोधी है। इसकी भंडारण क्षमता अच्छी है। इस किस्म के कंदों में अवकारक शर्करा 10-100 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम ताजा आलू और कुफरी चिप्सोना शुष्क पदार्थ की मात्रा 20-23 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म के कंद चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त हैं।
ग्वालियर में आठ प्रजातियों के बीज होते हैं तैयार ? (Seeds of eight species are prepared in Gwalior)
बता दें कि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला की ओर से आलू की 53 किस्मों का विकास किया जा चुका है। जिनमें 8 प्रजातियों का बीज ग्वालियर केन्द्र में तैयार किया जाता है। यहां पर क्षेत्रों की जलवायु के अनुकूलन के हिसाब से आलू की किस्में तैयार की जाती हैं। ग्वालियर में आलू की किस्में कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी ज्योति, कुफरी सिन्दूरी की मांग अधिक है। कई क्षेत्रों में कुफरी लवकार, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-3 के साथ कुफरी सूर्या, कुफरी पुखराज का बीज तैयार किया जाता है।
Potato Farming: आलू के लिए कौन सी मिट्टी अच्छी (Which soil is good for potatoes)
आलू की खेती (Potato Farming in Uttar Pradesh ) के लिए सबसे अच्छी दोमट भूमि रहती है। इसके साथ ही जिस खेत में आलू की खेती की जा रही है। उसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। कहें तो आलू की फसल मध्यम शीतोष्ण वाली जलवायु की अच्छी पैदावार देती है। भारत में आलू उन क्षेत्रों में उगाया जाता है। जहां पर दिन के समय तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो। इसके साथ ही रात का तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो। आलू की फसल की वृद्धि के लिए 15-25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान सबसे अधिक होती है।
आलू का बीज कैसा होना चाहिए ? (What should be the potato seed like?)
आलू की फसल के लिए खेत में 2-3 जुताई करें। यदि खेत में नमी कम है तो आलू की बुवाई से पहले खेत की सिंचाई करें। इसके बाद खेत की जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल करें। जिससे खेत की मिटटी भुरभुरी हो जाएगी। आलू का बीज हमेशा विश्वसनीय स्रोतों विशेषकर सहकारी संस्थाओं एवं बीज उत्पादक एजेंसियों से ही लें। आलू की बुवाई के लिए 40-50 ग्राम वजन वाले अच्छे अंकुरित बीज का प्रयोग करें। सामान्य तौर पर आलू की एक हेक्टेयर फसल बोने के लिए 30-35 कुंतल बीज की आवश्यकता होती है।
आलू में सिंचाई कितनी बार करें ? (How many times should potatoes be irrigated?)
आलू की बुवाई से पहले बीज का शोधन करें। जिसमें आलू की बीज को पहले बीज करीब 30 मिनट तक उपचारित करें। बीज कन्दी की छाया में सुखाकर ही बुवाई करें। आलू की फसल की बुवाई के लिए अक्टूबर का समय उचित रहता है।
आलू की बुवाई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। मेंड़ों में 8-10 सेंटीमीटर की गहरे में बुवाई करें। आलू की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। यदि भारी मृदा में बुवाई की है तो बुवाई के 10-12 दिन बाद अंकुरण से पहले पहली सिंचाई करनी चाहिए। आलू में दूसरी सिंचाई बुवाई के 20-22 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई टापड्रेसिंग एवं मिटटी चढाने के तुरंत बाद कन्द बनने की प्रारम्भिक अवस्था में करनी चाहिए। अंतिम सिचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पहले बंद कर देना चाहिए।
Kufri Chipsona-1 variety
आकार (Shape): आलू आमतौर पर अंडाकार से आयताकार आकार के होते हैं, जिनका रंग एक समान होता है।
त्वचा (Skin): उनकी त्वचा चिकनी होती है, जो आमतौर पर पतली और हल्के भूरे से हल्के पीले रंग की होती है। त्वचा की बनावट आसान सफाई और प्रसंस्करण की सुविधा प्रदान करती है।
आँखें (Eyes): आँखें उथली होती हैं, जिससे कंद कुछ अन्य आलू किस्मों की तुलना में अपेक्षाकृत चिकनी सतह देते हैं।
मांस: कुफरी चिप्सोना 1 आलू में सफेद मांस होता है, जो बनावट में दृढ़ और चिकना होता है।
आकार: कंद का आकार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन मध्यम से बड़ा होता है।
शुष्क पदार्थ सामग्री (Dry Matter Content) : कुफरी चिप्सोना 1 की प्रमुख विशेषताओं में से एक इसकी उच्च शुष्क पदार्थ सामग्री है। यह विशेषता कुरकुरे और स्वादिष्ट चिप्स बनाने के लिए आवश्यक है, जो इसे प्रसंस्करण उद्योग के लिए अत्यधिक वांछनीय बनाती है।
खाना पकाने की गुणवत्ता (Cooking Quality): आलू अपनी अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं, उबालने, तलने या बेक करने पर भी अपना आकार और बनावट अच्छी तरह से बनाए रखते हैं।
उपज (Yield): उनमें आमतौर पर उच्च उपज क्षमता होती है, जो उन्हें किसानों के लिए आर्थिक रूप से मूल्यवान बनाती है।
अनुकूलनशीलता (Adaptability): कुफरी चिप्सोना 1 विभिन्न बढ़ती परिस्थितियों के लिए अनुकूलनीय है, जिससे यह विभिन्न क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है।
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