Potato Farming: सीपीआरआई की प्रजाति कुफरी मोहन मध्यम अवधि वाली फसल है। कम लागत में पूरी पैदावार देने की क्षमता रखती है। कुफरी मोहन की पैदावार कई अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश में किसानों की कुफरी मोहन की बुवाई मैं रुचि बढ़ रही है।
आगरा, उत्तर प्रदेश
Potato Farming: कुफरी मोहन (Kufri Mohan) उत्तरी (Northern) और पूर्वी (Eastern) मैदानी इलाकों के लिए उच्च पैदावार देने वाला आलू (Potato) है। यह उथली आंखों और सफेद मांस के साथ सफेद क्रीम अंडाकार है। किसान यदि मृदा की जांच करवाने के बाद खाद एवं उर्वरक (Fertilizer) का प्रयोग करें और सही विधि से आलू की खेती (Potato Farming) करने पर अच्छा मुनाफा होगा। आलू की बुवाई से पहले बीज जरूर उपचारित करें तो कुफरी मोहन 350 से 400 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार दे सकता है। कुफरी मोहन में पानी की मात्रा अधिक होती है। इसकी विशेषता है कि यह पिछेती झुलसा प्रतिरोधी है। यह प्रजाति 90-100 दिन में तैयार हो जाती है।
Potato Farming: किसान एक से अधिक प्रजातियों की करें बुवाई (Farmers should sow more than one variety)
किसान अपने खेतों में एक से अधिक प्रजातियों की बुवाई करें। कुफरी बाहर के साथ-साथ सीपीआरआई की नई प्रजातियों की बुवाई करें, जिससे उन्हें अधिक से अधिक पैदावार मिल सके। कुफरी मोहन भी एक अधिक पैदावार देने वाली प्रजाति है, जो सीपीआरआई की है। इस प्रजाति के बीज की बुवाई करने में किसानों को थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। कुफरी मोहन में पानी की मात्रा अधिक होती है।
मोहन की 400 क्विंटल तक है पैदावार (Mohan has a yield of up to 400 quintals)
आलू की प्रजाति कुफरी मोहन मध्यम अवधि वाली फसल है। किसान इस प्रजाति की बुवाई करके 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं।
पिछेती झुलसा प्रतिरोधी है कुफरी मोहन (Which element is present in what quantity in potatoes)
कुफरी मोहन पिछेता झुलसा प्रतिरोधी है। इस प्रजाति में आलू बनने की प्रक्रिया जल्दी शुरू होती है। पाले का असर ज्यादा नहीं होता है, इसलिए पौधे काफी दिनों तक स्वस्थ रहते हैं। ऐसा होने से फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती है। किसानों के लिए ज्यादा लाभ देने वाली है।
आलू में कौन सा तत्व कितना होता है (Potato contains how much of which element)
आलू में मुख्य रूप से 80-82 प्रतिशत पानी की मात्रा होती है। इसके अलावा 14 प्रतिशत स्टार्च, 2 प्रतिशत चीनी, 2 प्रतिशत प्रोटीन, 1 प्रतिशत खनिज लवण वसा 0.1 प्रतिशत और थोड़ी मात्रा में विटामिन्स भी होते हैं।
देश में चौथे स्थान पर है आलू की फसल (Potato crop is at fourth place in the country)
चावल, गेहूं और गन्ना की फसल के बाद क्षेत्रफल में आलू की फसल का चौथा स्थान आता है। आलू एक ऐसी फसल है, जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अन्य फसलों (गेहूं, धान एवं मूंगफली) की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है। किसानों को आलू की फसल से प्रति हेक्टर आय भी अधिक मिलती है। आलू की फसल का रकबा बढ़ रहा है।
आलू की फसल के लिए जलवायु और तापमान (Climate and temperature for potato crop)
समशीतोष्ण जलवायु की फसल है आलू, जबकि उत्तर प्रदेश में इसकी खेती उपोष्णीय जलवायु की दशाओं में रबी के सीजन में की जाती है। सामान्य रूप से आलू की अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात्रि का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। आलू की फसल में कन्द बनते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है। कन्द बनने के पहले कुछ अधिक तापमान रहने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है, लेकिन कन्द बनने के समय अधिक तापमान होने पर कन्द बनना प्रभावित हो है। लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर तो आलू की फसल में कन्द बनना बन्द हो जाता है।
ऐसे करें आलू के लिए खेत की तैयारी (Prepare the field for potatoes in this way)
आलू की फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत की मृदा का पीएच मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए। बलुई दोमट और दोमट मिट्टी उचित जल निकास की उपयुक्त होती है। 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाने से ढेले टूट जाते हैं। नमी सुरक्षित रहती है। वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी शीघ्र व अच्छी हो जाती है। आलू की फसल के लिए बुवाई से पहले पलेवा जरूर करना चाहिए।
कार्बनिक खाद का प्रयोग जरूर करें (Use organic manure)
किसानों को आलू की बुवाई से पहले खेत में कार्बनिक खाद का प्रयोग करें। यदि हरी खाद का प्रयोग न किया गया है तो 15-30 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें, जिससे जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है। ये कन्दों की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है।
आलू के बीज का चयन ऐसे करें (Select potato seeds like this)
उद्यान विभाग आलू का किसानों को प्रथम श्रेणी का बीज वितरण करता है। इस बीज को 3-4 वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है। बुवाई के लिए 30-55 मिमी व्यास का अंकुरित (चिटिंग) आलू बीज का प्रयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर के लिए 30-35 क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है। आलू की प्रजातियों का चयन क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं बुवाई के समय अगेती फसल, मुख्य फसल और पिछेती फसलों के अनुसार किया जाना उचित होता है।
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