Garlic Farming: लहसुन की खेती देश में सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में होती है। इसके बाद गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश आता है। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी के लहसुन की चर्चा दूर तक होती है। लहसुन की फसल किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है। बाजार में लहसुन की डिमांड और भाव की स्थिति सुधर रही है। रबी सीजन की यह फसल किसानों की आमदनी बढ़ाने वाली है। यह नकदी फसल है। अच्छी पैदावार देने वाली कई प्रजातियां हैं।
उत्तर प्रदेश
Garlic Farming : कहावत है कि ‘एक सेब-एक दिन डॉक्टर को दूर करता है।’ इसी तरह ‘एक लहसुन की कली एक दिन डॉक्टर को दूर करती है।’ रबी सीजन की फसल लहसुन (Garlic) की बुवाई अक्टूबर से नवंबर में होती है। किसानों ने लहसुन की खेती (Garlic Cultivation) की तैयारी शुरू कर दी है। लहसुन की पैदावार उसकी प्रजाति , भूमि और फसल की देखरेख पर निर्भर करती है। किसानों को औसतन पैदावार प्रति हेक्टेयर 150 से 200 कुंतल मिल जाती है। लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल (Spice Crop) है।
लहसुन (Garlic) में एलसिन नामक तत्व पाया जाता है, जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियां पाई जाती है, जिन्हे अलग करके एवं छीलकर कच्चा, पकाकर स्वाद और औषधीय व मसाला (Medicinal and Spice) के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल गले और पेट सम्बन्धी बीमारियों में भी होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलसन ए ऐजोइन आदि। यह एक नकदी फसल है। इसमें कुछ अन्य प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं । इसका उपयोग अचार, चटनी, मसाले और सब्जियों में किया जाता है। लहसुन का उपयोग इसकी सुगन्ध और स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है ।

लहसुन को चाहिए ऐसी जलवायु (Garlic needs such a climate)
लहसुन की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। वैसे लहसुन के लिए गर्मी और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहे तो बढ़िया है। अधिक गर्मी और बड़े दिन कंद निर्माण के लिए उत्तम नहीं रहते हैं। छोटे दिन कंद निर्माण के लिए अच्छे होते है। इसकी खेती के लिए 29.35 डिग्री सेल्सियस तापमान, 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता होनी चाहिए।
लहसुन की प्रमुख किस्में (Major varieties of garlic)
यमुना सफेद 1 (जी-1) Yamuna White 1 (G-1)
प्रजाति का शल्क कन्द ठोस और बाह्य त्वचा चांदी की तरह सफेद, कली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 150-160 कुंतल प्रति हेक्टयर हो जाती है।
यमुना सफेद 2 (जी-50) Yamuna White 2 (G-50)
इस प्रजाति के शल्क कन्द ठोस, त्वचा सफेद, गुदा क्रीम रंग का होता है। पैदावार 130-140 कुंतल प्रति हेक्टयर हो जाती है। फसल 165-170 दिनों में तैयारी हो जाती है। रोगों जैसे बैंगनी धब्बा और झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है।

यमुना सफेद 3 (जी-282) Yamuna White 3 (G-282)
इस प्रजाति के शल्क कन्द सफेद बड़े आकार व्यास (4.76 सेमी) क्लोब का रंग सफेद और कली क्रीम रंग की होती हैं। 15-16 क्लाब प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 175-200 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टी से बहुत ही अच्छी है
यमुना सफेद 4 (जी-323) Yamuna White 4 (G-323)
इस प्रजाति के शल्क कन्द सफेद बड़े आकार (व्यास 4.5 सेमी) क्लोब का रंग सफेद और कली क्रीम रंग की होती हैं। 18-23 क्लाब प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 165-175 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 200-250 क्विंटल / हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टी से बहुत ही अच्छी है
इसके साथ ही इन किस्मों के अलावा स्थानीय किस्में महादेव, अमलेटा आदि की भी किसान अपने स्तर पर सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं।

विदेशी मुद्रा अर्जित करने में रखता है महत्वपूर्ण स्थान (It holds an important place in earning foreign exchange)
बात करें मध्य प्रदेश की तो यहां लहसून को खेती का क्षेत्रफल 60000 हेक्टेयर है। उत्पादन 270 हजार मीट्रिक टन है। लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार एवं उज्जैन के साथ-साथ प्रदेश के सभी जिलों में की जा सकती है। आज कल इसका प्रसंस्करण करके पावडर, पेस्ट, चिप्स तैयार करने के लिए प्रसंस्करण इकाइयां कार्यरत है, जो प्रसंस्करण उत्पादों को निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं।
लहसुन के बीज के जैविक उपचार करके बुवाई करें ( Sow garlic seeds after biological treatment)
कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी (आगरा) के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि लहसुन के बीज के जैविक उपचार के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरासेंस या ट्राइकोडर्मा विराइड या एजोस्पिरिलम या फॉस्फोबैक्टीरिया का इस्तेमाल करें। इसके 4 प्रतिशत के घोल में बीज को एक घंटे के लिए भिगोकर रख दें। इसके बाद बीज को निकालकर छाया में सुखा लें। रासायनिक उपचार के लिए रोपण के समय कार्बेन्डाजिम 12% और मैन्कोजेब 63% WP कवकनाशी संयोजन का 2-2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से प्रयोग करना चाहिए।
लहसुन के लिए खेत की तैयारी ऐसे करें (Prepare the field for garlic like this)
जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। भारी मिट्टी में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। मृदा का पीएच मान 6.5 से 7.5 अच्छा रहता है। दो-तीन बार जुताई करके खेत को अच्छी प्रकार समतल करें। इसके बाद उसमें क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिए।
लहसुन की बुवाई का सही समय (Right time for sowing garlic) : लहसुन की बुवाई के लिए सही समय अक्टूबर और नंबर होता है।

लहसुन का बीज और उपचार (Garlic Seed and Treatment)
लहसुन की बुवाई के लिए स्वस्थ एवं बडे़ आकार की शल्क कंदों (कलियों) का उपयोग किया जाता है। शल्क कंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुवाई के लिए नहीं करना चाहिए। बीज की आवश्कता 5-6 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। बुवाई से पूर्व कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3 ग्राम दवा के सममिश्रण के घोल से उपचारित करना चाहिए।
अच्छे उत्पादन के लिए लहसुन की बुवाई ऐसे करें (For good production, sow garlic in this way)
लहसुन की बुवाई कूड विधि, छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 सेंटीमीटर की गहराई में गाड़कर उपर से हल्की मिट्टी से ढक देना चाहिए। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को उपर ही रखते हैं। बोते समय कलियों से कलियों की दूरी 8 सेंटीमीटर और कतारों की दूरी 15 सेंटीमीटर रखना उपयुक्त होता है। बड़े क्षेत्र में फसल की बुवाई के लिए गार्लिक प्लान्टर का भी उपयोग किया जा सकता है।
लहसुन की बुवाई से पहले खेत में डालें खाद एवं उर्वरक (Put manure and fertilizer in the field before sowing garlic)
खाद व उर्वरक (manure and fertilizer) की मात्रा मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पकी हुई गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट खाद, 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके लिए 175 किलोग्राम यूरिया, 109 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) एवं 83 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) की जरूरत होती है। गोबर की खाद, डीएपी एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा का खड़ी फसल में 30-40 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए।
सूक्ष्म पोषक तत्वों का इस्तेमाल करने से बढ़ती है पैदावार (Using micronutrients increases the yield)
लहसुन की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा का उपयोग करने से उसकी पैदावार बढ़ती है। इसलिए 25 किलोग्राम जिन्क सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करना चाहिए।
लहसुन में टपक सिंचाई करके बढ़ती है पैदावार (Irrigation and drainage for garlic)
लहसुन की फसल में टपक सिचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग करने से पैदावार बढ़ती है। जल घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग टपक सिंचाई के माध्यम से करें ।
लहसुन के लिए सिंचाई एवं जल निकास
लहसुन की बुवाई के तत्काल बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। शेष समय में वानस्पतिक वृद्धि के समय 7-8 दिन के अंतराल पर और फसल परिपक्वता के समय 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई हमेशा हल्की करनी चाहिए। खेत में पानी भरने नहीं देना चाहिए। अधिक अंतराल पर सिंचाई करने से कलियां बिखर जाती हैं।
लहसुन की फसल में ऐसे करें निराई-गुड़ाई (How to control weeds in garlic crop)
लहसुन के पौधों की जड़ों में उचित वायु संचार के लिए खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई एवं दूसरी निराई-गुड़ाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए।
लहसुन की फसल में ऐसे करें खरपतवार नियंत्रण (How to control weeds in garlic crop)
लहसुन की फसल में मौथा, बरमूडा घास, कांग्रेस घास, कांटा चौलाई, जंगली चौलाई, बथुआ, पर्सलेन, सबुनी, जंगली पॉइंसेटिया, मकरा, फॉक्सटेल घास आदि प्रमुख खरपतवार हो जाते हैं। लहसुन की कलियों में 7-8 दिन में अंकुरण शुरू होता है, लेकिन खरपतवार रोपाई के 3-4 दिन में ही अंकुरित होने लगते हैं। लहसुन से तेज गति से बढ़कर पूरे खेत को घेर लेते हैं। फसल की बार-बार सिंचाई और उर्वरकों का प्रयोग खेत में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देता है। इसलिए उच्च विपणन योग्य बल्ब प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार के नियंत्रण के लिए ऑक्सीफ्लूरोफेन 23.5% EC / 1.5 -2.0 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर लहसुन रोपण से 5-7 दिन पूर्व या पेन्डीमेथालिन 30%EC / 3.5-4 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर लहसुन रोपण के 48-72 घंटे में करें और उसके बाद 40-60 दिनों के बाद एक बार हाथ से निराई जरूर करें।
लहसुन की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट (Major pests in garlic crop)
लहसुन की फसल में थ्रिप्स कीट लगते हैं। यह छोटे और पीले रंग के कीट होते है, जो पत्तियों का रस चूसते हैं। जिससे इनका रंग चितकबरा दिखाई देने लगता है। इनके प्रकोप से पत्तियों के शीर्ष भूरे होकर एवं मुरझाकर सूख जाते हैं। शीर्ष छेदक कीट की मैगट या लार्वी पत्तियों के आधार को खाते हुए शल्क कंद के अंदर प्रवेश करके सड़न पैदा करती है, जो फसल को नुकसान पहुंचाती है।
लहसुन की फसल में थ्रिप्स कीट का नियंत्रण (Control of thrips pest in garlic crop)
थ्रिप्स कीट (thrips pest) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली./15 लीटर पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम/हेक्टरयर + सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चहिए।
लहसुन की फसल में शीर्ष भेदक कीट का नियंत्रण (Control of top borer insect in garlic crop)
किसान उपयुक्त फसलचक्र व उन्नत तकनीक से खेती करें।
इमिडाक्लोप्रिड 5 मिलीलीटर/15 लीटर पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम/हेक्टेयर+ सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चहिए।
लहसुन की फसल में लगाने वाला बैंगनी धब्बा रोग (Purple spot disease in garlic crop)
बैंगनी धब्बा रोग (पर्पिल ब्लाच) है। इस रोग के प्रभाव से प्रारम्भ में पत्तियों तथा उर्ध्व तने पर सफेद एवं अंदर की तरफ धब्बे बनते है, जिससे तना एवं पत्ती कमजोर होकर गिर जाती है। फरवरी एवं अप्रैल में इसका प्रक्रोप ज्यादा होता है।
बैंगनी धब्बा रोग की रोकथाम एवं नियंत्रण (Prevention and control of purple spot disease)
लहसुन की फसल में डब्बा रोक के नियंत्रण के लिए मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 2.5 ग्राम दवा के सममिश्रण से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करके बुवाई करें। मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। इसके अलावा किसान रोग रोधी किस्म जैसे जी-50, जी-1, जी 323 लगाएं।
लहसुन की फसल में लगने वाला झुलसा रोग (Blight disease in garlic crop)
झुलसा रोग के प्रक्रोप की स्थिति में लहसुन की पत्तियों की उर्ध्व स्तम्भ पर हल्के नारंगी रंग के धब्बे बनते हैं।
लहसुन में झुलसा रोग का नियंत्रण (Control of Jalsa disease in garlic)
लहसुन की फसल में झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। अथवा कापर आक्सीक्लोराईड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें।
लहसुन की फसल की कटाई ऐसे करें (Harvest garlic crop in this manner)
लहसुन की फसल की कटाई 50% गर्दन गिरावट के स्तर पर करनी चाहिए।
लहसुन की खुदाई एवं लहसुन का सुखाना (Digging of garlic and drying of garlic)
लहसुन की फसल में जिस समय पौधों की पत्तियां पीली पड़ जायें और सूखने लगें तब सिंचाई बन्द देनी चाहिए। इसके बाद गांठों को 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.25 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं। उन्हें साधारण भण्डारण में पतली तह में रखते हैं। ध्यान रखें कि फर्श पर नमी न हो। लहसुन की पत्तियों के साथ जुड़े बांधकर भण्डारण किया जाता है।
लहसुन की उपज का ऐसे करें भंडारण (Storage garlic crop in this way)
अच्छी प्रक्रिया से सुखाए गए लहसुन को उनकी छटाई करके साधारण हवादार घरों में रख सकते हैं। 5.6 महीने भण्डारण से 15.20 प्रतिशत तक का नुकसान मुख्य रूप से सूखने से होता है।
लहसुन ब्लड प्रेशर, पेट, फेफड़े, कैंसर में इस्तेमाल (Garlic is used for blood pressure, stomach, lungs, cancer)
इसका इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर, पेट के विकारों, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिए, कैंसर व गठिया की बीमारी, नपुंसकता और खून की बीमारी के लिए भी होता है। इसमें एंटीबैक्टीरिया और एंटी कैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है।
- Garlic Farming
- Garlic is making farmers rich
- Garlic sowing
- Garlic Yamuna White 1 (G-1) Varieties
- Garlic कर रहा किसानों को मालामाल
- Kisan Samachar
- Major varieties of garlic
- Rabi season
- These varieties of garlic are giving bumper yield
- किसान समाचार
- रबी सीजन
- लहसुन की खेती
- लहसुन की प्रमुख किस्में
- लहसुन की बुवाई
- लहसुन की यमुना सफेद 1 जी-1
- लहसुन की ये प्रजाति दे रहीं बंपर पैदावार
Leave a comment