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Fertilizer News: NPK की DAP से कीमत कम, फसल में पैदावार भरपूर l Farmers can get higher yield from NPK at lower cost

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Fertilizer News: आगरा में रबी सीजन की फसलों (Rabi season crops) के लिए भरपूर मात्रा में खाद है। जिले की बात करें तो डीएपी के 1.5 लाख पैकेट समितियों पर भेजे गए हैं। जिले में सितंबर महीने में 24,421 मीट्रिक टन खाद स्टॉक है। जिले में रबी सीजन के लिए 58 हजार मीट्रिक टन की मांग है। किसानों को मिट्टी और रुपयों को बचाने के लिए डीएपी की जगह पर एनपीके खरीदने पर ध्यान देना चाहिए।

आगरा, उत्तर प्रदेश

Fertilizer News: खेतों में फसलों का चक्र न अपनाने और ज्यादा मात्रा में लगातार खाद यानी डीएपी (Diammonium PHsphate) का इस्तेमाल करने से खेतों की मिट्टी बीमार पड़ रही है। इससे किसानों की जेब पर लागत का भार तो बढ़ता ही है। इसके मुताबिक, उत्पादन मिल मिलता है। ऐसे में केंद्र और प्रदेश सरकार भी किसानों को खाद और बीज के उपयोग को लेकर जागरूक करने में लगी हैं। मगर, किसानों की जिद कहें या अनदेखी कहें। जिससे मिट्टी में डीएपी (DAP) की ओवर डोज (overdose) से पैदावार गिर रही है तो मिट्टी बीमार हो रही है। रबी की फसल की बुवाई चल रही है। इस समय आगरा की नहीं प्रदेश में ही खाद को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं रहती हैं। जबकि, कृषि विभाग (Agriculture Department) के अधिकारियों का कहना है कि, रबी सीजन की फसलों के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध है। मगर, किसान Nitrogen, Phosphorus and Kotassium (NPK) को ज्यादा वरीयता नहीं देते हैं। जिससे लागत कम आएगी। जबकि, DAP से जो पैदावार होती है, उतनी ही पैदावार एनपीके से पैदावार किसानों को मिलती है।

Fertilizer News: आगरा में खाद की भरमार

जिला कृषि अधिकारी डॉ. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि आगरा जिले के किसानों के लिए खाद (फॉस्फेट उर्वरक) की कोई कमी नहीं है। रबी सीजन की फसलों के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद है। रबी सीजन की फसलों के लिए 58 हजार मीट्रिक टन खाद की डिमांड की गई है। सही मात्रा में खाद आगरा पहुंच रहा है। सितंबर महीने में अभी तक डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) की उपलब्धता 9361.657 मीट्रिक टन है। इसी तरह एनपीके (नाट्रोजन फॉस्फेट पोटाश) 11415.560 मीट्रिक टन और एसएसपी (सिंगल सुपर फॉस्फेट) 3645.650 मीट्रिक टन उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि किसानों को फसल के अनुरूप जब जरूरत हो तभी खाद खरीदें। ज्यादा दिन पहले से खाद खरीदकर न रखें। जिससे अव्यवस्थाएं ना फैलें। इसका बाजार में दुकानदार मौके का फायदा न उठा सकें। किसान को नवंबर में खाद की जरूरत पड़ेगी तो वे अभी से खाद नहीं खरीदें। नवंबर महीने में ही खरीदें। खाद की कोई कमी नहीं है।

फसलों की लागत कम करने को खरीदें NPK

जिला कृषि अधिकारी डॉ. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि इफको की एक रैक 2700 मीट्रिक टन की गुरुवार को आगरा पहुंंच गई है। जिसे किसानों के लिए समितियों पर भेजा रहा है। जिलाधिकारी के आदेश पर प्री पोजीशन डीएपी 4500 मीट्रिक टन को भी समितियों पर भेजा जा रहा है। अभी लगभग 7200 मीट्रिक टन खाद (डीएपी) पहुंच जाएगी। उन्होंने बताया कि इससे पहले 2370 मीट्रिक टन डीएपी और 2451 मीट्रिक टन एनपीके की बिक्री हो चुकी है। बात करें पिछले साल सितंबर महीने में 17419 मीट्रिक टन डीएपी और 2116 मीट्रिक टन एनपीके की बिक्री हुई थी। इस साल किसानों का एनपीके की तरफ रुख बढ़ रहा है, जिसे और बढ़ाना है। इसलिए किसानों से अपील है कि खेतों की मिट्टी को बचाने और फसलों की लागत कम करने के लिए एनपीके खरीदें और अधिकांश फसलों में इसका इस्तेमाल करें।

UP Agra Farmers can get higher yield from NPK at lower cost

किस फसल के लिए क्या बेहतर

जिला कृषि अधिकारी डॉ. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि किसानों को आलू की फसल में डीएपी के बजाय एनपीके का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे लागत कम होगी और उत्पादन भी पूरा होगा। इसके साथ ही मिट्टी को तीनों मुख्य पोषक तत्व एक साथ मिल जाएंगे। गेंहू की फसल में भी किसान एनपीके का इस्तेमाल करें। सरसों की फसल में किसानों को एसएसपी का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे दानों में चमक और वजन बढ़ता है।

नैनो यूरिया और डीएपी भी करें इस्तेमाल

जिला कृषि अधिकारी डॉ. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि सरकार नैनो डीएपी और नैनो यूरिया पर भी जोर दे रही है। किसानों को नैनो डीएपी और यूरिया का इस्तेमाल करना चाहिए। ये ऐसे खाद हैं, जिनसे किसानों की जेब पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता है और फसलों का उत्पादन अच्छा होता है। साथ ही खेतों की मिट्टी का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

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आलू की बुवाई में DAP का अधिक उपयोग नुकसानदेह

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान का कहना है की सामान्यतः जनपद के किसान आलू की फसल की बुवाई के समय 3 से 4 गुना ज़्यादा मात्रा में डीएपी का इस्तेमाल करते हैं, जो आलू फसल को नुकसान पहुंचता सकता है। खास कर जब आपकी मृदा का पीएच मान 7 से अधिक होता है। क्योंकि खेत में डीएपी घुलने पर अमोनियम निकल कर वाष्पशील होने से अंकुरों और जड़ों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। जो खतरनाक होता है।

DAP से अधिक घुलनशील NPK

कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी आगरा के मृदा वैज्ञानिक डॉ. संदीप सिंह ने बताया कि डीएपी (डाई-अमोनियम फास्फेट) में दो तत्व नाइट्रोजन और फास्फोरस होता है, जबकि एनपीके एनपीके (12:32:16) में तीन तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटैशियम होता है। डीएपी में पोटैशियम न होने के कारण यह हमारी दानेदार फसलें धान, मूंग, उड़द, गेहूं आदि के लिए उत्तम नहीं होता है। ऐसी फसलों में हमें एनपीके का ही प्रयोग करना चाहिए। वहीं एनपीके डीएपी से अधिक घुलनशील होने के कारण मिट्टी में आसानी से घुलकर सीधे फसलों पर अपना प्रभाव डालता है। डॉ. संदीप सिंह का कहना है की यदि किसान की जमीन हल्की है तो उसे डीएपी के स्थान पर एनपीके का ही प्रयोग करना चाहिए।

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रबी सीजन की फसलों में सबसे अधिक लागत लगती है। इनमें आलू की फसल तो किसानों की जेब अच्छी खासी ढीली कर देती है। उपज का भाव कम मिलने पर किसानों को भारी नुकसान होता है। कम लागत में फसलें उगानी हैं तो किसी से होड़ न करें। समझदारी दिखाते हुए डीएपी का चक्कर छोड़ दें। बाजार में NPK खूब मिलती है उसका फसलों में इस्तेमाल करें। एक तरफ किसानों को खाद की उलब्धता के लिए ज्यादा संघर्ष और रुपये खर्च नहीं करने पड़ेंगे। दूसरी तरफ कम लागत में फसल की अच्छी पैदावार ले सकेंगे।

एनपीके (NPK) दो रूपों में मिलता है

जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार सिंह ने बताया कि बाजार में मिल रही एनपीके में पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश पोषक का प्रतिशत निश्चित है। कई उर्वरक कंपनियां कई तरफ के एनपीके तैयार करते हैं. जो विभिन्न पौधों की प्रजातियों के विकास के प्रत्येक चरण की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाले NPK फॉर्मूलेशन से बने हैं। संक्षिप्त नाम के बाद आने वाली संख्याएँ प्रत्येक पोषक तत्व की सांद्रता प्रतिशत प्रदान करती हैं। जिसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम का प्रतिशत तय होता है. जो फसल के हिसाब से तय किया गया है।

  • NPK 8:8:8:- अधिक नाजुक पौधों, जैसे ऑर्किड और ब्रोमेलियाड के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इसमें अधिक संतुलित फॉर्मूलेशन है।
  • NPK 10:10:10:- यह घास, पत्ते और वनस्पति के लिए अनुशंसित एक मानक फॉर्मूलेशन है जिसमें फल या पत्तियाँ नहीं होती हैं।
  • NPK 04:14:08:- फलों और फूलों वाले पेड़ों के लिए सबसे उपयुक्त है, क्योंकि यह फूलों और फलों के उत्पादन को उत्तेजित करता है क्योंकि इसमें अधिक पोटेशियम और फॉस्फोरस होता है।
  • NPK 20:20:20:- इसकी उच्च सांद्रता बड़े पौधों के लिए संकेतित है।
  • NPK 20:10:10 या 20:05:20: लॉन को खाद बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • एनपीके 25:25:25:- यह हाइड्रोपोनिक प्रजातियों पर केंद्रित एक सूत्रीकरण है।

नाइट्रोजन के कार्य: नाइट्रोजन से प्रोटीन बनती है। जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है। इसके साथ ही पर्ण हरित के निर्माण में भी भाग लेती है। नाइट्रोजन से पौधों की वृद्धि और विकास तेजी से होता है। नाइट्रोजन से पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है।
ये वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। इससे अनाज तथा चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है। इसके साथ ही नाइट्रोजन की वजह से फसल के दानें तेजी से बढते हैं।

  • पौधों में प्रोटीन की कमी होने से हल्के रंग का दिखाई पड़ना।
  • नाइट्रोजन की कमी से निचली पत्तियां झड़ने लगती है। जो क्लोरोसिस है।
  • पौधों की बढ़वार रूकने के साथ ही कल्ले भी कम बनते और फूल कम आते हैं।
  • फल वाले वृक्षों का गिरना, पौधों का बौना और फसल का जल्दी पकना।

फॉस्फोरस के कार्य : फॉस्फोरस की उपस्थिति में कोशा विभाजन जल्द होता है। यह न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है। ये कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है।फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है। बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढ़ती है। फास्फोरस से पौधे की जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती हैं। इससे फल जल्दी आते हैं।

  • फॉस्फोरस की कमी से पौधे छोटे और पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है।
  • फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं। दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं।
  • पौधो की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है। कभी-कभी जड़े सूख भी जाती हैं।
  • अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना। फल व बीज का निर्माण सही न होना।
  • फॉस्फोरस की कमी से आलू की पत्तियां प्याले के आकार की हो जाती है।
  • दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है।

पोटैशियम के कार्य: पौधे कीजड़ों को मजबूत बनाता है। पोटैशियन पौधे सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है। इससे स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है। इससे अनाज के दानों में चमक आती है। फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है। सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है।

  • पोटैशियम की कमी से पत्तियाँ भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं। जो समय से पहले पत्तियां गिर जाती हैं।
  • पोटैशियम की कमी से पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं।
  • पोटैशियम की कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारों पर दाने कम पड़ते हैं।
  • पोटैशियम की कमी से आलू में कंद छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है।
  • पोटैशियम की कमी पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।

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