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Potato Farming: आलू की ये प्रजाति 80 दिन में कर देती है मालामाल, Kufri Surya Potato Variety

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Potato Farming: केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला ने आलू की कुफरी सूर्या प्रजाति विकसित की है। यह अगेती 
और मुख्य फसल के रूप में इसकी बुवाई मालामाल कर रही है। पिछेती और अगेती दोनों ही समय पर कुफरी सूर्या की बुवाई कर सकते हैं। ये आलू की प्रजाति कई प्रजातियों से अधिक पैदावार देती है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो आलू की कुफरी सूर्या का हर साल रकबा 
बढ़ रहा है।

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Potato Farming: आलू की एक ऐसी किस्म है, जो जल्दी तैयार होती है। जिससे किसानों (Farmers) को जल्द रुपये मिले। जी हां, ये आलू की किस्म कुफरी सूर्या (Kufri Surya) है। जो केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला (Central Potato Research Institute Shimla) ने विकसित की है। जो गर्मी सहन करने वाली और हॉपर-बर्न प्रतिरोधी आलू की प्रजाति (Potato Variety) है। जिसमें आयताकार कंद, सफेद चिकनी त्वचा और हल्का पीला मांस होता है। यह प्रजाति उत्तर-पश्चिमी (North-Western) मैदानों में जल्दी रोपण के लिए है। अच्छी पैदावार के लिए सितंबर महीने में इसकी बुवाई होनी चाहिए। इसे उत्तर-पश्चिमी और पश्चिम-मध्य (West Central) मैदानों में मुख्य फसल के मौसम में भी उगाया जा सकता है। फसल (Crop) 70 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है।

Potato Farming: Kufri Surya से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार (Kufri Surya yields 300 quintals per hectare)

आलू की प्रजाति कुफरी सूर्या (Kufri Surya) की यदि मध्य सितंबर में बुवाई करने पर फसल से लगभग 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। जबकि, अक्टूबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने पर कुफरी सूर्या की फसल 90 से 110 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यह मैदानी क्षेत्रों में अगेती फसल में लगाने के लिए उपयुक्त है। इसमें अधिक तापमान के साथ-साथ हॉपर व माईट कीटों (hopper and mite pests) के प्रति सहनशीलता भी है। यह प्रजाति बेहतरीन दोष रहित कंद पैदा करती है, जिसमें बड़े (85 मिमी) कंदों का उच्च अनुपात होता है। उच्च गुणवत्ता वाले फ्रेंच फ्राइज और चिप्स में प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त होते हैं। खुदाई के समय कंद में शुष्क पदार्थ की मात्रा 20-21% होती है।

आलू की कुफरी सूर्या प्रजाति
(Photo Credit: Kisan Voice)

डायबिटीज की दवा के बराबर असरदार (Effective as diabetes medicine)

सीपीआरआई (CPRI) शिमला के वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति को विकसित किया है। कुफरी सूर्या मधुमेह घटाने में दवा की तरह भी काम कर सकती है। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान लखनऊ (सीडीआरआई) में किये गए परीक्षणों में भी आलू की कुफरी सूर्या प्रजाति टाइप-2 डायबिटीज की दवा मेटफॉर्मिन के बराबर असरदार पाई गई है।

इंसुलिन जैसी प्रोटीन पैदा करता है कुफरी सूर्या (Kufri Surya produces insulin-like protein)

सीपीआरआई ने परीक्षणों में पाया है कि आलू की तीन प्रजाति भी इंसुलिन जैसा प्रोटीन पैदा करती हैं। इसके बाद इन प्रजातियों के आलू का पाउडर बनाकर परीक्षण के लिए सीडीआरआई भेजा गया। रिपोर्ट में कुफरी सूर्या को सबसे अधिक प्रभावी पाया गया है।

आलू में कौन सा तत्व कितना प्रतिशत (Which element is in what percentage in potatoes?)

आलू में मुख्य रूप से 80-82 प्रतिशत पानी होता है। इसके अलावा 14 प्रतिशत स्टार्च, 2 प्रतिशत चीनी, दो प्रतिशत प्रोटीन, एक प्रतिशत खनिज लवण वसा 0.1 प्रतिशत और थोड़ी मात्रा में विटामिन्स भी पाए जाते हैं।

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला (Central Potato Research Institute Shimla)
(Photo Credit: Kisan Voice)
आलू की फसल चौथे स्थान पर आती है (Potato crop comes in fourth place)

देश में चावल, गेहूं और गन्ना की फसल के बाद क्षेत्रफल में आलू की फसल का चौथा स्थान है। आलू एक ऐसी फसल है, जिससे किसानों को प्रति इकाई क्षेत्रफल में अन्य फसलों (गेहूं, धान एवं मूंगफली) की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है। किसानों को आलू की फसल से प्रति हेक्टर आय भी अधिक मिलती है।

आलू की उन्नत खेती को जलवायु और तापमान (Climate and temperature for advanced cultivation of potato)

आलू समशीतोष्ण जलवायु की फसल है, जबकि उत्तर प्रदेश में इसकी खेती उपोष्णीय जलवायु की दशाओं में रबी के सीजन में की जाती है। सामान्य रूप से आलू की अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात्रि का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए। आलू की फसल में कंद बनते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है। कंद बनने के पहले कुछ अधिक तापमान रहने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि बहुत अच्छी होती है, लेकिन कंद बनने के समय अधिक तापमान होने पर कंद बनना रुक जाता है। लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर आलू की फसल में कंद बनना बंद हो जाता है।

(kufari Mohan Potato Seed)
(Photo Credit: Kisan Voice)
आलू की फसल के लिए भूमि एवं भूमि प्रबन्ध (Land and land management for potato crop)

आलू की फसल से अच्छी पैदावार के लिए मृदा का पीएच मान 6 से 8 के मध्य होना चाहिए। बलुई दोमट और दोमट मिट्टी उचित जल निकास की उपयुक्त होती है। 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं, जिससे ढेले टूट जाते हैं। खेत में नमी सुरक्षित रहती है। वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी शीघ्र व अच्छी की जा सकती है। आलू की फसल के लिए बुवाई से पहले पलेवा करना चाहिए।

कार्बनिक खाद और उसके फायदे (Organic manure and its benefits)

किसानों ने यदि खेत में हरी खाद का प्रयोग न किया हो तो 15-30 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करें। इससे मिट्टी में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जो कन्दों की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है।

आलू बीज का चयन (Selection of potato seed)

उद्यान विभाग किसानों को आलू का प्रथम श्रेणी का बीज देता है। इस बीज को 3-4 वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है। बुवाई के लिए 30-55 मिमी व्यास का अंकुरित आलू बीज का प्रयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर के लिए 30-35 क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है। प्रजातियों का चयन क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं बुवाई के समय अगेती फसल, मुख्य फसल या पिछेती फसलों के अनुसार किया जाना उचित होता है।

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