Wheat Variety HD: कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि गेंहू की HD 3118 (पूसा वत्सला) किस्म उन्नत है।जो किसानों के लाभकारी गेंहू की किस्म है। जो किसानों को अच्छी उपज और रोग प्रतिरोधी विशेषताएं भी प्रदान करती है। जिससे ही गेंहू इस किस्म की खेती करने से किसानों की आय में वृद्धि होगी। जो देश की खाद्य सुरक्षा में भी योगदान प्रदान करेगी। ऐसे में आइए गेहूं की उन्नत किस्म HD 3118 (पूसा वत्सला) के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Rabi Crops: भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार में गेहूं (Wheat Crops)की खूब खेती होती है। रबी में (Rabi Crops) गेंहू फसल है। देश के इन राज्यों की अनुकूल जलवायु और मिट्टी में गेहूं की अच्छी उपज होती है। हाल के वर्षों में ICAR ने अनुसंधान के माध्यम से गेहूं की कई उन्नत किस्मों विकसित की हैं। जो गेंहू की उन्नत किस्में हैं। ICAR की गेंहू की प्रमुख उन्नत किस्म HD 3118 है। जो पूसा वत्सला (Wheat Variety Pusa Vatsala) के नाम से भी जानी जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि, गेंहू की किस्म से अधिकतम उपज 66.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जो किसानों के लिए गेंहू की एक किस्म है। यह किस्म पीले और भूरे रतुए रोग के प्रति प्रतिरोधी है। गेंहू की खेती करने वाले किसानों के लिए एक शानदार गेंहू की उन्नत विकल्प किस्म है। किसान अभी से रबी की फसल की तैयारी में जुट गए हैं। ऐसे में आइए गेहूं की उन्नत किस्म HD 3118 (पूसा वत्सला) के बारे में विस्तार से जानते हैं।
उन्नत किस्म HD 3118 की खेती का समय (Time of cultivation of improved variety HD 3118)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि, गेंहू की किस्म HD 3118 (पूसा वत्सला) की खेती का सबसे उपयुक्त समय देर से बुवाई और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था होना है। गेंहू की इस किस्म की खेती उन क्षेत्रों के लिए आदर्श है। जहां वर्षा और सिंचाई की स्थिति बेहतर है। सही समय पर इस किस्म की बुवाई से फसल की वृद्धि और विकास में मदद मिलती है। जिससे उपज में वृद्धि होती है।
HD 3118 की अधिकतम उपज (Maximum yield of HD 3118)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) केICAR की उन्नत गेहूं की किस्म HD 3118 (पूसा वत्सला) की उपज भी किसानों को मालामाल कर सकती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, पूसा वत्सला की औसत उपज लगभग 41.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जो किसान इस किस्म की खेती करते हैं। प्रगतिशील किसान अपने बेहतर कृषि प्रबंधन और उचित अनुकूल परिस्थितियां का फायदा उठाकर इसकी अधिकतम उपज 66.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उगाते हैं। यह उपज किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी है। उन्हें गेंहू की किस्मक की खेती से अधिकतम लाभ कमा रहे हैं।
HD 3118 (पूसा वत्सला) की परिपक्वता (Maturity of HD 3118 (Pusa Vatsala))
आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि गेहूं की उन्नत किस्म HD 3118 महज 112 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। कहे तो गेंहू की ये किस्म बुवाई के चार माह में कटने के योग्य हो जाती है। कहें तो ये गेंहू की इस गेंहू की किस्म की खेती से किसान एक फसल चक्र में कम अवधि वाली एक और फसल की खेती कर सकते हैं। जिससे वे अपनी भूमि का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं।
HD 3118 (पूसा वत्सला) की मुख्य विशेषताएं Main features of HD 3118
रोग प्रतिरोधी (Disease resistant) : गेंहू की किस्म HD 3118 पीले और भूरे रतुए रोग के प्रति प्रतिरोधी है। जो गेहूं की फसल के लिए एक गंभीर समस्या होती है। प्रतिरोधी विशेषताओं की वजह से उपज भी बंपर होती है। गेंहू की ये फसल लोगों की सेहत भी बेहतर रखती है।
गिला ग्लुटेन प्रतिशत (Wet gluten percentage): गेंहू की इस किस्म में गिला ग्लुटेन प्रतिशत 29.8 है। जो गेंहू की उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं की किस्मों में शामिल करता है। इसके साथ ही इस किस्म के गेंहू की चपाती गुणवत्ता मूल्यांक 7.5 है। जो, इसे भारतीय व्यंजनों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बनाता है।
HD 3118 (पूसा वत्सला) की खेती इन राज्यों में HD 3118 (Pusa Vatsala) cultivation in these states
आईसीएआर के वैज्ञानिकों के मुताबिक, गेंहू की HD 3118 किस्म की खेती मुख्य रूप से उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र में की जा सकती है। गेंहू की किस्म की पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल (पहाड़ियों को छोड़कर) और उत्तर पूर्वी राज्यों के मैदान क्षेत्र में खेती की जा सकती है। इन क्षेत्र की अनुकूल जलवायु और मिट्टी आदर्श है। गेंहू की HD 3118 किस्म की खेती करने से गेंहू की बंपर पैदावार होती है।
गेंहू की फसल लगने वाले प्रमुख कीट (Major pests of wheat crop)
दीमक (Termite) : यह एक सामाजिक कीट है। जो कालोनी बनाकर रहती है। एक कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व राजा होते हैं। जिसमें श्रमिक पीलापन लिये हुए सफ़ेद रंग के पंखहीन होते है। जो फसलों के क्षति पहुंचाते है। दीमक नियंत्रण एक वैज्ञानिक के लिए संपर्क करें।
नियंत्रण के उपाय (Measures of control)
- बुआई से पूर्व दीमक के नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी या थायोमेथाक्सम 30 प्रतिशत एफएस की 3 मिली. मात्रा प्रति किग्रा बीज की दर से बीज को शोधित करें।
- ब्यूवेरिया बैसियाना 15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा. प्रति हे. 60-70 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
गुजिया विविल (Gujiya weevil): यह कीट भूरे मटमैले रंग का होता है। जो सूखी जमीन में ढेलें एवं दरारों में रहता है। यह कीट उग रहे पौधों को जमीन की सतह से काटकर हानि पहुंचाते हैं।
नियंत्रण के उपाय (Control measures): खड़ी फसल में दीमक / गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 5 ली. प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
माहूँ (Aphids) : ये हरे रंग के शिशु एवं प्रौढ माँहू पत्तियों एवं हरी बालियों से रस चूस कर हानि पहुंचाती है। माहूँ मधुश्राव करते हैं जिस पर काली फफूंद उग आती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उतपन्न होती है।
नियंत्रण के उपाय (Control measures): माहूँ कीट के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा आंक्सीडेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी. की 0 ली. मात्रा अथवा थायोमेथाक्सम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. 50 ग्राम प्रति है। लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है।
गेहूं के खेत में चूहे का नियंत्रण (Control of rats in wheat field) : खेत का चूहा (फील्ड रैट) मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) और खेत का चूहा (फील्ड माउस) हैं।
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